



अमन कुमार पाठक/रानी सकरपुरा:[खगड़िया] खगड़िया जिला के रानी सकरपुरा गांव की नव विवाहित कन्याओं ने, हर्षोल्लास के साथ मधुश्रावणी व्रत/पूजन प्रारंभ किया। मिथिलांचल में इस मधुश्रावणी पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व उत्तर बिहार के ज्यादातर जिलों में विशेष तौर पर बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस पर्व की मान्यता है कि इसे नवविवाहिता ही मना सकती हैं, या यूं कहें कि शादी के बाद जो पहला सावन का महीना होता है, उसमें ही इस पर्व को मनाया जाता है। इस पर्व की खासियत यह है कि इसकी संपूर्ण विधी विधान से पूजा महिला पुरोहित ही करवाती है, अर्थात यह एकलौता ऐसा पर्व है जहां महिला ही पुरोहित का काम कर सकती है।
इस प्रसिद्ध पर्व की विशेषता बताते हुए सुनील कुमार ठाकुर कहते हैं की, स्कंद पुराण के अनुसार नाग देवता और मां गौरी की पूजा करने वाली महिलाएं जीवनभर सुहागिन बनी रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि आदिकाल में कुरूप्रदेश के राजा को तपस्या से प्राप्त अल्पायु पुत्र चिरायु भी अपनी पत्नी मंगलागौरी की नाग पूजा से दीर्घायु होने में सफल हुए थे।
अपने पुत्र के दीर्घायु होने से प्रसन्न राजा ने इसे राजकीय पूजा का स्थान दिया था। इस पर्व का मिथिला में विशेष महत्व है। मधुश्रावणी पर्व मिथिला की नवविवाहिताओं के लिए होती है। उनके लिए यह एक प्रकार से साधना है। नवविवाहिता लगातार 15 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में सात्विक जीवन व्यतीत करती है।
बिना नमक का खाना खाती है। जमीन पर सोती है। झाड़ू नहीं छूती है। बहूत ही नियम से रहना पड़ता है। विषहरी माता मंदिर के मुख्य पुजारी चंद्रकिशोर ठाकुर जी मधुश्रावणी पर्व की विशेषता बताते हुए कहते हैं की, इस साधना में प्रति दिन सुबह में स्नान ध्यान कर नवविवाहिता विषहरा यानि नाग वंश की पूजा, और मां गौरी की पूजा अर्चना करती हैं, तथा व्रत से संबंधित गीत संगीत का आनंद लेती हैं।
इस 15 दिवसीय पर्व के दौरान 15 दिनों की अलग-अलग कथाएं हैं। इसमें भाग लेने के लिए घर के साथ आस-पड़ोस की महिलाएं भी आती हैं। उसके बाद शाम को अपनी सखी सहेलियों के साथ फूल लोढ़ने जाती हैं। इस बासी फूल से ही मां गौरी की पूजा होती है। पति के दीर्घायु हेतु यह महापर्व 15 दिनों तक चलती रहती है।