समस्तीपुर। राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पुसा समस्तीपुर के वैज्ञानिक ग्रामीण कृषि मौसम सेवा, डॉ॰ आर॰ पी॰ सी॰ ए॰ यू॰ पूसा समस्तीपुर, एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से 10-14 दिसम्बर 2025 तक के मौसम पूर्वानुमान में बताया गया है कि, उक्त अवधि में उत्तर बिहार के ज्यादातर जिलों में मौसम साफ और शुष्क रहने की संभावना है।

इन दिनों में सुबह के वक्त मध्यम कुहासा छा सकता है, हालांकि इस दौरान दिन में मौसम साफ रहने की संभावना भी है। इस दौरान दिन का अधिकतम तापमान 23 से 24 डिग्री सेल्सियस, तथा न्यूनतम तापमान 9 से 11 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने का अनुमान है। हालांकि इस बीच पछिया हवा के कारण पूर्वानुमानित अवधि में ठंढ़ में बढ़ोत्तरी भी होने की संभावना व्यक्त की गयी है, साथ ही इस दौरान औसतन 5-7 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से पछिया हवा भी चलने का अनुमान है। वहीं सापेक्ष आर्द्रता सुबह में 85 से 95 प्रतिशत तथा दोपहर में 40 से 45 प्रतिशत रहने की संभावना जतायी गयी है।
किसानों के लिए आवश्यक सुझाव:- राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पुसा समस्तीपुर के वैज्ञानिक ने, किसानों को सुझाव देते हुए कहा है कि, वैसे किसान जिनकी गेहूँ की फसल 21-25 दिनों की हो गई हो, वह किसान अपनी गेहूं की फसल में हल्की सिंचाई अवश्य कर लें। सिंबाई के 1-2 दिनों बाद प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम नेत्रजन उर्वरक का प्रयोग भी किया जाना आवश्यक है। वहीं अगर गेहूँ की फसल में दीमक का प्रकोप दिखाई दें तो, गेहूं फसल की बचाव हेतु क्लोरपायरीफॉस 20 ई॰ सी॰ 2 लीटर प्रति एकड़ 20-25 किलोग्गाम बालू में मिलाकर खेत में सिंचाई से पहले छिड़क दें।
गेहूं की फसल में खर-पतवार नियंत्रण की सबसे उपयुक्त अवस्था बोआई के 30 से 35 दिनों बाद होती है। इसलिए गेहूँ में उगने वाले सभी प्रकार के खरपतवार के नियंत्रन हेतु, पहली सिंचाई के बाद सल्फोसल्फयुरॉन 33 गाम प्रति हेक्टर एवं मेटसल्फयुरॉन 20 गाम प्रति हेक्टर दवा 500 लीटर पानी में मिलाकर खड़ी फसल में छिड़काव करें। ध्यान रहें छिड़काव के वक्त खेत में प्रयाप्त नमी अवश्य हो। इस दौरान उन्होंने यह भी बताया कि, किसान भाई चना की बुआई अतिशीघ्र सम्पन्न करने का प्रयास करेंगे। इसके लिए चना का उन्नत किस्म पूसा 256, के०पी०जी०-59 (उदय), के०डब्लू०आर० 108, पंत जी 186 एवं पूसा 372 अनुशंसित है का प्रयोग करें। इसके लिए बीज को बेबीस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
24 घंटा बाद उपचारित बीज को कजरा पिल्लू से बचाव हेतु क्लोरपाईरीफॉस 8 नि०ली० प्रति किलोग्राम की दर से मिलायें। पुनः 4 से 5 घंटे छाया में रखने के बाद राईजोबीयम कल्वर (पाँच पैकेट प्रति हेक्टेयर) से उपचारित कर बुआई करें। इस दौरान आलू की फसल में निकौनी करने पर भी बल दिया, तथा निकीनी के बाद नेत्रजन उर्वरक का उपरिवेशन कर आलू में मिट्टी मिट्टी चढ़ाने का कार्य करने तथा आलू में कीट-व्याधि की निगरानी करने की भी बातें कही। पिछात गोभी वर्गीय सब्जियों में गोभी की तितली/छिद्रक कीट/पत्ती खाने वाली कीट (डायमंड बैंक मॉथ) की निगरानी करें। इस कीट के पिल्लू गोभी की मध्यवाली पत्तियों तथा सिरवाले भाग को अधिक क्षति पहुँचाती है। शुरुआती अवस्था में यह पिल्लू पत्तियों की निचली सतह में सुरंग बनाकर एवं उसके अन्दर पत्तियो को खाता है। इन कीटों से बचाव हेतु टाइमेथोएट 30 ई०सी० का 1.0 मि०ली० प्रति ली पानी की दर से घोल बनाकर पौधों पर समान रुप से छिड़काव करें।
प्याज के 50-55 दिनों के तैयार पौध की रोपाई करे। इसके लिए खेत को समतल कर छोटी-छोटी क्यारियों बनायें। क्यारियों का आकार, चौड़ाई 1.5 से 2.0 मीटर तथा लम्बाई सुविधानुसार 3-5 मीटर रखे। प्रत्येक दो क्यारियों के बीच जल निकासी के लिए नाले अवश्य बनायें। पॉक्ति से पॉक्ति की दुरी 15 से०मी०, पौध से पौध की दूरी 10 से०मी० पर रोपाई करे। खेत की तैयारी में 15 से 20 टन गोबर की खाद, 60 किलोग्राम नेत्रजन, 80 किलोग्राम फॉसफोरस, 80 किलोग्राम पोटास तथा 40 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर का व्यवहार करें। पिछात प्याज की पौधशाला से खरपतवार निकाल कर हल्की सिंचाई करें।
टमाटर की फसल में फल छेदक कीट की निगरानी करें। इसके पिल्लू फल में घुसकर अन्दर से खाकर पूरी तरह फल को नष्ट कर देते हैं, जिससे प्रभावित फलों की बढ़वार रुक जाती है और वे खाने लायक नहीं रहते, पूरी फसल बरबाद हो जाती है। फल छेदक कीट से बचाव हेतु खेतों में पक्षी बसेरा लगायें। कीट का प्रकोप दिखाई देने पर सर्वप्रथम कीट से क्षतिग्रस्त फलों की तुराई कर नष्ट कर दें एवं उसके बाद स्पीनेसेड 48 ई०सी०/1 मि०ली० प्रति 4 लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करें। सब्जियों वाली फसल में निकौनी करें।
बैगन की फसल को तना एवं फल छेदक कीट से बचाव हेतु ग्रसित तना एवं फलो को इकठा कर नष्ट कर दें, यदि कीट की संख्या अधिक हो तो स्पिनोसेड 48 इ०सी०/1 मि०ली० प्रति 4 ली० पानी की दर से छिड़काव करे। लहसुन की फसल में निकाई-गुराई करें तथा कम अवधि के अन्तराल में नियमित रूप से सिंचाई करें। लहसुन की फसल में कीट-व्याधि की निगरानी करें।
पशुओं को रात में खुले स्थान पर नहीं रखें। बिछावन के लिए सूखी घास या राख का उपयोग करें। दूधारू पशुओं को हरे एवं शुष्क चारे के मिश्रण के साथ नियमित रुप से दाने एवं कैल्सियम खिलाये।






